अद्वैत

विषय और वस्तु की गैर-प्रकटता, अंतर्निहित अस्तित्व की, पारंपरिक सत्य की, और/या किसी आर्य के वैचारिक रूप से प्रकट होना शून्यता पर ध्यानात्मक समरूपता.